हवाएँ और कविताएँ

बेदर्द हवाएँ, पता नहीं कैसे,
डूब मेरे मन की गहराई,
कुछ मन की बातें चुराई,
उसके कानों में कह आई ।

पता नहीं कैसे फिर उसे,
हवाएँ उड़ा कहीं ले गई,
कविताएँ – पतंगों सी लहराई,
दूर देश, फिर आँखें छलकाई ।

आँखे पथराई, दिल भी घबराई,
मन की बातें, मन में रह गई,
फिर भी – क्यों
आज उसने ,
अपनों से भी सब बातें छिपाई ।