वो यहीं कहीं है ।

इन अनजान वादियों में,
मैं अदना सा आदमी,
छोटे – छोटे मेरे सपने,
छोटा सा घर मेरा यहाँ,
छोटा सा उपवन मेरा,
छोटी सी तितलियाँ,
मंडराती, छोटे-छोटे फूलों पर ।

कहीं बैठी है, छोटी सी,
प्यारी, साँवले सपनें संजोए,
बुनती रंगीन गलिचे,
उस गाँव के साये में,
गाँव की भाषा में गाती ।
पर ऐसा लगता है,
बगल से गुनगुनाती,
हँसती, बस चली जाती ।

कहती हवाओं से,
पगली, दिशाओं से,
मन्नतें माँगती,
बस दुआ करती,
भुलने के लिए याद करती ।
यहाँ मिलती उसकी,
देह की एक खुशबू,
इन्हीं वादियों में,
पता नहीं, कैसे आती ।