मेरी प्रेरणा

आज फिर तुमने कह दी,
बिना सोचे, बिना समझे ।
मुझे थोड़ा जाने, अनजाने ।
भींग गयी मेरी पुतलियाँ,
पर न थे कोई आँसु ।
भींग गया मेरा दिल ।
कुछ पंक्तियाँ, अपनापन लिए।
बिना पहचाने कि मैं कौन,
या खुब पहचाने मुझे ।

वर्षों पहले सुनता था,
ऐसी ही कुछ पंक्तियाँ,
मेरी नगण्य शक्ति पर।
बस आज तक वही ,
सच होती गयी ।
पता नहीं क्यों,
उसके बिना रहता ,
मै एक अकिंचन ।

मैं ढुंढ रहा था,
काफी दिनों सें,
कुछ ऐसे ही शब्द ।
आज फिर तुमने कह दी,
दुहरा दी वही बातें ।
थोड़ा हँसकर,
मेरी नादानी पर,
मोती से तेरे दाँत ।
थोड़ा गर्वित,
मेरे कारनामों पर,
होंठ कह गये कुछ पंक्तियाँ,
बस समझाकर ।

मैं उतावला नही दिखता,
पर सच पुछो तो – हूँ ।
पर लगता है फिर आज,
चुपके धड़कता है दिल मेरा ।
सच होंगी तेरी पंक्तियाँ,
सच होंगे मेरे सपने,
तु है फिर मेरी प्रेरणा ।