मेरी पहली हवाई यात्रा – 1

मेरी बहन पिंकी को समर्पित – जिसकी बत्तीसी बहूत दिनों से नहीं दिखी है और जिसकी इच्छा थी इसे ब्लाग पे डालने की ।

हाँ तो मैनें एक वादा किया था कुछ दिनों पहले । सो मैं अब ब्लाग गाड़ी का स्टियरिंग घुमा रहा हूँ , हमारी लेखन शैली से ।

एक छिपी बात यह है कि मैं हरेक रविवार शापिंग कम्पलेक्स में ह्युमर का बटी खोजने जाता था । वहाँ पुरे भारत से आयी खुबसुरत लड़कियाँ खुब मिल जाती, पर ह्युमर कहीं भी नहीं मिलती । बाद में उनके बराबर वहाँ आने का राज पता चला – वो भी सेंट ( सेंस) आफ ह्युमर खोजने आती थी ।

वैसे एक गहरी रात शांता ( अरे ये शांता कोई लड़की नहीं, क्रिसमस का दाढ़ी वाला पेटु शांता क्लाउज है) मेरे कमरे में कुछ रहस्यमय गिफ्ट टपका गया ।

खैर जाने दिजीए ये बातें, इस कड़ाके की ठंड में गँवार की दुकान की थोड़ी चाय पेश रहा हूँ, मलाई मारकर । आशा है, चुस्की मारकर पियेंगे । वैसे पसंद न आए तो इसे फेंकने की चिंता मत किजीए , अनेक इंडियन लोगों की तरह घर के बाहर वाला , खुले सड़क का विशाल कुड़ादान है ना ।

अब कास्टिंग खत्म और फिल्म चालु आहे ।

यह कहानी है – मेरी पहली हवाई यात्रा की ।

गारंटी है कि खेत के मेड़ से, आपके दादाजी की तरह हमारे दादाजी ने भी आकाश में कई बार हवाई जहाज उड़ते देखी होगी, जब तक सिर के ऊपर से वह पुरी तरह से गुजर न जाए। उस पर चढ़ने का स्वपन देखने की गलती उन्होनें नहीं की होगी, इतना तो मुझे पुरा विश्वास है । वे लोग बस बगल से एक बार हवाई जहाज देख पाते तो खुद को भाग्यशाली मानते । ये अलग बात है खेत के मेड़ से हवाई – जहाज देखने के दौरान, इधर उनका भैंसा अपना ही खेत चर गया ।

अच्छा छोड़िए गुजरे जमाने की, सीधे लैंडिंग किजीए हमारे जमाने में । हमारे कस्बों में लालु नेता, आई मिन, आलु नेता, भिंडी नेता को भाषण के लिए भीड़ जमानी हो तो बस हेलीकाप्टर से पहूँचना होता है । हमारे गाँवों में तो खैनी डोलते पटुआ के खेत से बस हेलीकाप्टर भगवान का दर्शन करने पहूँच जाती है, भारी भीड़ ।

जाने दीजिए गाँव की बात ,हमारे शहर में, मैं भी एक बार ऐसे ही भाषण सुनने गया था, पर देखता रहा दो घंटे तक हेलीकाप्टर और उसके बड़े – बड़े डैने और दिमाग भिड़ाता रहा उसे फंक्सनिंग पर।

खानदान में सबने प्लेन देखा, पर दूर से । सबके आशीर्वाद से पैसावाला हो गया ना, अब तो मैं बगल से प्लेन देख सकता हूँ । यह मन चिड़ैया भी है ना, बड़ा लोभी होता है । ट्रेन में नये यात्री की तरह, बैठने दो तो पैर उठाने का जगह निकाल लेगा, पैर उठाने दो तो, थोड़ी देर में पसर जाएगा । आमदनी बढ़ी तो मेरे मन का अपना धंधा शुरू हो गया । अब मानव जन्म सार्थक करने का मौका है । कुछ घंटो के लिए पंछी का अवतार मिल सकता है ।

हाँ तो मैनें ठान लिया, प्लेन पर चढ़ना है । इकोनामी क्लास की हवाई यात्रा भी चलेगी । गुग्गुल की बुटी दादाजी के दवाई के काम आता था । ये कैसा होता है कभी जानने की कोशिश नहीं की हमने पर वैसा ही कुछ मिलता जुलता नाम का उपयोग हमने गुग्गुल डाट काम का किया ईटरनेट में – सस्ते फ्लाईट खोजने में । बहुत छानकर मिला एक – स्पाईस जेट । शब्दार्थ खोजा तो पता चला – मशाला जेट । वैसे स्पाईस जेट के प्रचार में लाल ड्रेस में एयर होस्टेस एकदम लाल परी सी लग रही थी । मैनें भी मशाला फिल्मों से इसे जोड़ दिया । मतलब ये हुआ कि, हवाई जहाज में खुबसुरत एयर होस्टेस । अब क्या था – मन हिलोरें मारने लगा । इस मुसीबत की दुनिया से काफी उपर, नील आकाश में लाल परियों के साथ यात्रा ।Spice Jet

शुरु हो गयी तैयारी । टिकट बुक करवाया ईटरनेट से । मगर विश्वास नहीं हुआ कि बिना लाईन में लगे खुद से प्रिटिंग किया हूआ कागज टिकट कैसे हो सकता है । खुद को ऐसे मनाया कि मेरे को ठग सकते है सभी को थोड़े ही न ठगेंगे । कुछ भी हो हमलोग समझदार यात्री है, हमने टिकट परे छपे नियम-कानुन ध्यान से पढ़े । देखा एक ही बैग ले जाने को कहा है – उसकी लंबाई – चौड़ाई – ऊँचाई – भार, 35 किलो सब निर्धारित है । एक अलग से लैपटाप जा सकता है । चल तब तो ठीक है ।

टिकट करवाया था यात्रा के एक महीना पहले । घर पे तो पहले बता ही दिया कि मैं इस बार फ्लाईट से आ रहा हूँ । रिश्तेदारों में यह बात फैल गयी । अब उनसे बात होती तो, फ्लाईट का जिक्र जरूर करता । दिन गिनने लगा मैं फिर ।

सामान भर कर बैग बहुत भारी लग रहा था – कहीं 35 किलो तो न हो गया । सुबह पनसारी की दुकान गया । कहा – भैया मेरा बैग नाप दो जरा । चावल -दाल के जगह बैग, वह शायद सोच रहा होगा । पता है, वह भारी था सिर्फ 15 किलो ।

उस दिन फ्लाईट शाम को थी । आफिस से भी जाया जा सकता था, यही तो बिजी लाईफ है न । आफिस का काम भी ज्यादा कुछ नहीं, मगर आन लाईन बहुत दिनों बाद भेंट हो गयी – एक पुरानी दोस्त । जिसके पास शिकायतों का पुरी रेडीमेड पोटली थी । पर मैनें न छेड़ी उसे । पता था – अगर पोटली खुली तो, शांति का आशा नहीं थी । और उस दिन को मैं पुरी शुभ यात्रा बनाना चाहता था । फिर किसी को जान बुझकर दुखी करके यात्रा थोड़े ही न बनता है । सो मैनें थोड़ी देर ही सही बिलकुल नये दोस्त के तरह बात की, वो खुश और मैं भी खुश । बाई – बाई फिर आफलाईन ।

दोपहर का खाना आफिस में उस दिन खाया भी न जाता था । फुल एक्साईटमेंट । बहुत सारे सहकर्मियों के लिए हवाई यात्रा, आटो रिक्शा जैसा था । मैं एक बार खाली चढ़ तो लुँ, हवाई जहाज पर, हरेक साफ्टवेयर प्रोफेशनल की तरह अपना भी जन्म सार्थक हो जाए । एयरपोर्ट जाने के नाम पे आटोवाले ने भी रेट ज्यादा लगाया । उसका रेट पचास रुपये ज्यादा था । खैर मैंने भी सोचा, प्लेन पर चलने वाले को इन आटो वालों से ज्यादा मोल भाव नहीं करना चाहिए । मैं भी मान गया, उसका रेट । वो भी जा खुश होकर ले जा रहा था हवाई यात्री को । मैं महसुस कर रहा था – पुरा गर्वित ।

वैसे ही घर सात महीने के बाद जा रहा था – वो भी हवाई जहाज से । वहाँ घर पे सब महीने – दिन – अब घंटे गिन रहे थे । खुब नाम लिया – अपने भगवान का ।

एयरपोर्ट पर पहूँचकर देखा तो सब स्टेन्डर्ड यात्री । ज्यादातर बढ़िया सुटकेश और बढ़िया बैग लेकर चलने वाले । इधर हमारे स्टेशन पर तो झोला वाले ज्यादा दिखते हैं , वैसे सस्ते सुटकेश ही आजकल खुब दिखते हैं – दिल्ली, पंजाब जाने वालों मजदुरों के ।

हम भी हाई क्वालिटी साफ्टवेयर मजदुर जो ठहरे । मन में प्लान हो गया कि अगली बार के लिए एक हवाई यात्रा लायक सैमसोनाईट सुटकेश खरीदना होगा , आखिर हमारे सम्मान की बात है । खैर हमने भी अपना बैग का चेन चेक कर लिया था । किस्सा था कि उस बैग का चेन कभी-कभी स्लिप करता था ।

हमारे एक मित्र हैं – जिन्होनें बता दिया था कि पुरी जाँच पड़ताल होती है, सीट नम्बर भी वहीं मिलेगा इसलिए एक घंटा पहले जाना चाहिए । हमने लिखा देखा – “चेक इन” और खड़ा हो गया, अपना बैग लेकर । मैं पुरा एक घंटे पहले पहूचा था ना इसलिए नबंर एक मे था लाईन में । पुरे बीस मिनट खड़ा रहा वहीं । पीछे मुढ़कर देखा तो लंबी लाईन लगी थी । मैं पुरा गौरवान्वित महसुस कर रहा था उस समय , नहीं तो मुझे एक बार लेट से स्टेशन पहूँचकर चलती गाड़ी में चढ़ने का बुरा अनुभव रहा है ।

शुरु हो गयी चेक – इन । मेरे सामने एक पट्टी चलने लगी । एक स्टाफ ने डाल दिया मेरा बैग उस पट्टी पे । चला गया, बेचारा बैग – बिना मालिक का , एक छोटी सी गुफा में । मेरे पैर के मोच का एक्स रे करवाया था दो सौ रुपये लगे थे । अरे वाह, यहाँ सामान का एक्स रे फ्री । हमें बगल के दुसरे रास्ते से टिकट देखकर जाने दिया । सोचा कि मेरा बैग मिल जाएगा अंदर जाकर । पर नहीं मिला बैग,मैं वहाँ खड़ा रहा । मेरे पीछे खड़े कई महाशय अपना सुटकेश लेकर चले गये । उसके बाद दो लोग और अपना सामान लेकर चले गये । मगर मेरा दिमाग ठनका – कुछ गड़बड़ हुआ है । मेरा बैग देखा तो जाँच करने वालों ने उठाकर रख लिया था । मुझे खड़ा देख जाँच करने वाला पुछा – “ये आपका बैग है, पता चला है कि इसमे तीन बड़े- बड़े पैक्ड डब्बे है ।” “अरे सही है यार, एक्स रे मशीन तो उस्ताद है “- मैनें सोचा । मैनें कहा – “दवाई हैं “। उसने मुझे बैग खोलने को कहा – “चैक होगा “। लोगों के भरे एयरपोर्ट में, मैं खोल कर निकाल रहा था अपना सामान । हाय रे , गई मेरी प्राईवेसी बुट लादने । मैनें दिखाई उनको महंगी आयुर्वेदिक दवाई के तीनों सील्ड पैकेट , जो मैंने माँ के लिए खरीदी थी । वे पुछने लगा -” डाक्टर का पुर्जा कहाँ है “। वो फिर कहने लगा -” दवाई बिना पुर्जा के ले जाने नहीं दिया जाता ” । खैर उस बंदे को मैनें समझा दिया – आयुर्वेदिक दवाई के पुर्जे नहीं होते । वो अब पुछने लगा -” दवाई के उपयोग “। डाक्टर तो बन न पाया , पर अब उसे ऐसा डाक्टरी अंदाज मे समझा दिया, उसने वह भी सोच रहा होगा कि उसे एक पैकेट गिफ्ट में कोई देता । वह संतुष्ट हो गया कि मैं उग्रवादी (टाईप) नहीं हूं । खैर मुक्ति मिली ।Airport Bangalore Inside

बैग से पैक्ड सामान को निकालकर फिर से डालना भी बड़ा कष्टकर होता है । अब चेन से मस्क्कत करने के बाद मैनें बैग उन्हें दे दिया । उनलोगों नें उसे पुरा सुरक्षा स्टीकर से सील किया ।

अब मेरे पीछे आये सारे लोग हवाई अड्डे में सभी बड़े प्रेम से अपना सामान लेकर जा रहे हैं , सीट नम्बर लेने । अब एक बात तो पक्की थी कि मेरे से पहले बहूत लोग अपना सीट नंबर ले चुके थे । किस्मत मेरी अगर तेज रही तो ही मिलेगी, खिड़की वाली सीट । अब आगे जाकर देखा तो दुकान सी लगी हूई थी, सभी हवाई कंपनियों की । किंगफिसर वाले का राजसी लाल कालीन बिछा था, उनके काउंटर के सामने l। ईर्ष्या से जल भुनकर रह गया मैं । पर अपनी किस्मत में मिला मैं खोज रहा था , सस्ते फ्लाईट, स्पाईस जेट का काउंटर । दिख गई लाल परी काउंटर पर । वहाँ मैं फिर लाईऩ में लग गया । अभिवादन किया लाल परी ने । अरे क्या खुब मुस्काई । बडी तेज दिखती थी, उतनी है तेज चलती थी उसकी पतली भिंडी सी अंगुलियाँ, उसके कंप्युटर पर । साफ्टवेयर इंडस्ट्री में इन परियों के लिए कुछ सीटों का आरक्षण का विधेयक संसद में पेश होना चाहिए । उसने फिर मुस्कुराकर पुछा – कोई सीट की इच्छा । मैनें झट से कहा – खिड़की के तरफ । वो सिर हिलाई – मतलब मिल गया । हमारी लाटरी लग गयी । मन तो किया कि लाल-परी का मोबाईल नंबर या ई-मेल आई-डी ले लुँ । पर स्वाभिमानी मैं भी कम नहीं – नहीं लिया ।

उधर मेरा बैग एक बंदे ने वहीं पर ले लिया । देखा चली गयी बेचारी बैग – फिर एक पटरी पे ।

रह गया हाथ में मेरा अपना हैडबैग , जिसमें सोई थी – मेरी प्यारी बीबी, आई मिन – मेरा लैपटाप, पानी का बोतल, मेरी इस्कान की किताबें और नास्ता । अब लग गया मैं फिर से लाईन में । अब जाना था – वेटिंग कारिडार में । फिर जाँच हूई मेरे है़डबैग की – लग रहा था , फिर इसका भी एक्स-रे होगा । हे भगवान – परीक्षा पास करा दे – मेरे इस बैग को । डाल दिया बैग फिर एक फीते पे । फिर उधर जाकर देखा – बेचारा बैग दो-चार पलटियाँ खाकर लुढ़का हूआ है , बाकी लोगों के बैग के साथ । इतने बेदर्द क्यों है ये लोग ?  मेरे लैपलाप का कुछ हुआ तो नहीं – मेरी धुकधुकी शुरु हो गयी । खैर तसल्ली इस बात से हुई कि शायद ऐसा सबके बैग के साथ होता होगा, सो कोई बात नहीं ।

वहाँ जाकर देखा, बस फर्स्ट क्लास वेटिंग रुम जैसा कुर्सी की लाईन । एक बंदे को देखा तो लैपटाप खोलकर बड़ी तेजी से कुछ लिख रहा था, और वैसी ही खुब मुस्कुरा रहा था । मैं समझ गया – बंदा किसी गर्ल-फ्रेंड से चैटिंग कर रहा हैं । वैसे आफिस में खाना तो ठीक से खाया तो नहीं गया, अब लगी थी भुख बड़ी तेज । देखा सामने नास्ते का काउंटर है । कई तरह के सजाए खाने का सामान । दो पावरोटी, मतलब टोस्ट, के भीतर चम्मचभर सब्जी डाल दो तो यहाँ कहते हैं – सैंडविच –  कीमत चालीस रुपये । समोसा – तीस रुपये । काफी तीस रुपये । अब याद आ गया मेरा स्टेशन , पावरोटी पाँच रुपया पैकेट, समोसा – दो रुपया । काफी – पाँच रुपये ।

खैर मैं भी हवाई जहाज पे जा रहा था । ट्रेन की यात्रा से ये काफी बेहतर है ना, मैने अब पर्स का मोटापा भी वैसा कर लिया था । सो आर्डर किया सैडविच और काफी । सत्तर रुपये का बिल । पेट क्या भरा, बोलकर अब फायदा नहीं ।

अब मेरी अंगुलियाँ खाते-खाते दुख रही है । याद आ रही है दुरदर्शन के बीते जमाने में रविवार के फिल्म की इंटरवल वाली बात –

फीचर फिल्म का शेष भाग 7:45 पर । आई मिन – कहानी जारी रहेगी …..