तेरा प्रसाद

याद है न वो दिन,
उसने फेंका था 
तेरा प्रसाद ,
तेरे उसी सिंहासन पर,
बैठा रहता,
तू मुस्कुराता ।
Sri Vishnu

क्यों लेता वह तेरा प्रसाद,
तू सुनकर चुप जो रह जाता,

आँखे खोल क्यों अंधा होता तू,
क्यों न सुनता उसकी वाणी ।
उस दिन, उसकी पगली के आँसु,
बस मिन्नतें करती रही,

चिथड़ों पर लेटी ।
और तू चुपचाप,
बस गिनता रहा दिन ।

हाँ, तू सुनता है ।
पर परीक्षा लेता है न,
तड़पाता है – देखता है न,
न जीने देता, न मरने देता ।
ले, कब तक लेगा परीक्षा ?

अबकी तेरी भी परीक्षा है ।

देख, वहाँ पगली को,
फिर जगती है, रातों को,
सुबह घुमती है, सड़कों पे,
आँचल पसारे ।
पहले भर दे तू,
फिर उसका आँचल ।
उसी दिन फिर लेगा वो,

फटे आँचल से तेरा प्रसाद ।

Life in swings

He couldn’t say all the things,
He couldn’t hide all the things,
Destiny’s play just playing.

Waiting for time to go,
Waiting for time to come,
Nature’s mystery just solving.

He could see her so close,
He could see her so far,
An unknown journey travelling.

Having all the strengths within,
Having all the weakness here.
Still inspirations creating poems.