जीवन का एक पल

मैनें बस कही, मेरे मन की,
बिना किसी विशेषण के,
बिना किसी सर्वनाम के ।

बस कुछ घंटे, इस पल के,
बस देखते-देखते बीत जाते,
जीया मैनें, पहली बार,
बिलकुल हँसकर, गाकर ।
बस सच्ची रंगो की भरी,
छेड़ते रंगोली की पिचकारी ।

जीवन की गति, किलोलें करती,
कभी मंद, कभी तीव्र गाती ।
उन सप्तकों पर तैरना
मैं सीख गया ।
हिलोरें लेना सीख गया,
मध्यम धाराओं में ।

दिख गया, आदीशक्ति की कला,
कितनी सुंदर है न उसकी,
समय की धारा,
बस यूँ ही बहता रहूँ ।
हँसता रहूँ, गाता रहूँ ।

हाँ, मैं खुश हूँ, मेरी हार से,
हार गया मेरा ” मैं ” ।
हाँ, मैं खुश हूँ, मेरी जीत से ।
कि मैनें जीता है एक पल ।