सादे पन्ने

पड़ी हूई थी चिठ्ठियाँ
आलमारी के कोने में,
फेंका भी नहीं उन्हें ।
कभी दरवाजे खुलते,
देखा हँसते थे –
Blank Pages
अक्षर उनमें ।
पर वह न हँस पाता,
टपकती उसकी दो बुँदें,
आँसु की तब,
भींग जाती स्याह,
मिटने लगते अक्षर ।
मान न पाता,
बस खेल था वो ।
बंद कर आलमारी,
बैठ गया कुर्सी पर,
देखा तो वहीं,
कलम पड़ी थी
टेबुल पर और,
कागज के सादे पन्ने,
पर बढ़ते न थे,
हाथ उसके,
लिख न पाते,
अगर लिखा कुछ
इस पल,
जो बीत जाएगा,
रह जाएँगे लिखे पन्ने ।
जो उसे प्यारे थे, और
बन जाएगा इतिहास ।
और फेंक न सकेगा ।
फिर नहीं लिखा उसने-
पुचकारा वहाँ पड़े सादे पन्ने ,
जो कम से कम,
चुप तो रहते ।

ऐसे हैं कुछ रिश्ते

वो कहते, भुल जाओ सब,
वो कहते, मोड़ दो राहें,
वो कहते, तोड़ दो रिश्ता,
रिश्ते
वो कहते, किस्से हैं सारे ।

जानकर भुल गया सब मैं,
रंगीन दुनिया में खो गया,
हँसता- गाता, आवारा सो गया,
पर वह रात सपनों में आ गया ।

सुबह मोड़ दिया, रास्ता अपना,
अनजानी राहों पर निकल पड़ा,
भुल गया सारे गलियाँ रास्ते ,

वह अनजाने मोड़ पर दिख गया ।

फिर, उसे तोड़ दिया, टुकड़ों में,
फिर, बेजान टुकड़ो को पीस दिया,
देखा, वो धूल बनकर बिखर गया,
मेरी माटी में अमिट बस गया ।

ऐसे हैं कुछ रिश्ते ।

अनजानी बातें

काश मैं समझ पाता,
गुलमोहर पर बैठे,
पंछियों की आवाज,
उनके गीत, उनकी वाणी ।

उनके ही तरह मस्त,
काश वैसे ही दौड़ पाता,
पतली सी टहनियों पर
गिलहरियों के साथ ।

काश मैं समझ पाता,The colors
तितलियों की टोली को,
खिले फुलों से उनकी बातें ,
फिर चुपके से रंग चुराना ।

काश मैं समझ पाता,
वे सब अनजानी बातें,
तैर रही थी पुरवैया में,
बस छु कर निकल गयी ।

कविता और पुतुल

my kavitaक्यों जाग गई, आज मेरी कविता ?
कितनी अच्छी ही तो सोयी थी !
कहाँ जाएगी तू, अनजानी राहों में ?
तू छोटी, मेरी नन्हीं डर जाएगी ।

खो जाएगी, बस रह मेरे पास,
कौन समझेगा, कौन जानेगा,
तेरी नादानी, तेरी बचकानी !
तू बस मेरे कंधों पे सो जा ।

छोटी सी खिड़की जो मैनें खोली ।
देख आज मेरी छोटी सी बगिया,
जहाँ गुलाबी कलियाँ उदास खिली ,
पर मत जा अभी – उजाला होने दे ।

मेरी थाती, देख दूर सड़क पर,
ले आऊँगा फिर तेरी एक पुतुल ।
लाल परी सी, गुनगुनाती गुड़िया,
फिर खेलना तुम दोनों, मैं सोऊँगा ।

पुरूषार्थ और प्रेम

पुरूष कहलाने वाली एक काया के,
झुके कंधे और सशक्त छाती मध्य,
छिपा है, एक कोमल सा मुखड़ा,
विश्वस्त होंठ कुछ बुदबुदाते हैं ।

फिर निःशब्द होंठ, आज गुँथ जाते हैं ।

धीमे-धीमे बढ़ते उसके हाथें,
गुदगुदाती हूई फिर अंगुलियाँ,
श्यामल घटाओं के गजरों में,
दिशाहीन बस चलती जाती है।

माथे चमकता, ध्रुव सुंदर दिखता है ।

मुर्तिकार की थिरकती हैं अंगुलियाँ,
आभास कराती है, आज माटी को,
उसका अस्थित्व, उभरते आकार ।
जीवंत प्रतिमा – यही सत्य है, सुंदर है ।

माटी – मुर्तिकार दोनों मोहित हैं ।

अनोखी सृष्टि में दो दृष्टि,
वादियों में, उसके चंचल नयन,
उन पहाड़ियों के मध्य घाटी,
बस आज निहारा ही तो करती है ।

मनुज मन आह्लादित हो जाता है ।

चित्रकार की एक तुलिका,
इंद्रधनुषी थाली से रंग लिए,
स्पंदन का रंग भरती जाती है,
स्पष्ट दिखता तो, बस गुलाबी है,

चित्रकार आज पुरष्कृत होता है ।

जग को ज्ञान दान देने वाला पुरूष,
सारी कवित्व, विद्वता का पाठ भुलकर,
क्षणभर हेतु, ज्ञान के नवीन बंधन में,
कुछ अपरिभाषित पाठ पढ़ जाता है ।

उसका ज्ञान पूर्ण यहीं होता है ।

सावन की बाँसुरी सी प्रेरित, Pair
मयूर की थिड़कन से कंपित,
तीन ताल के अनवरत पलटों तक,
शयामल घटाओं में अनुगंजन ।

प्रेमभुमि यूँ अनुप्राणित होता है ।

अनुशासित अश्वारोही का पराक्रम,
पाँच अश्वों का लयबद्ध चाल में,
अनुभूति की इस उद्विगन बेला मे,
समर्पित – फिर एक विजयी होता हे ।

पुरूषार्थ फिर परिभाषित होता है ।

Translation of individual words is an easy task. Wish, it has been same for translating poem’s weaved words !! I am trying to present literary ( contextual ) meanings, as far I could do.

Hope, our non-Hindi speaking readers can grasp the essence out of it.

पुरूषार्थ – the complete manhood
काया – body
सशक्त छाती – man’s strong chest
विश्वस्त – object worth faithful
श्यामल घटाओं – black clouds ( long black hairs )
गजरों – ornamental flowers of hairs
ध्रुव – the pole star- ( bindi @ the middle of forehead )
माटी – the soil ( the body which is worth the same without consciousness )
अस्थित्व – presence
जीवंत प्रतिमा – a lively lady sculpture
आह्लादित – the mode of ecstasy
तुलिका – paintbrush
स्पंदन – vibrating strokes
विद्वता – learnedness
पुरष्कृत – rewarded
प्रेरित – inspired
अनवरत – consistent
पलटों – musical beats & their turn ups
अनुगंजन – the echo
अनुप्राणित – filled with liveliness
अश्वारोही – the horse rider
पाँच अश्वों का लयबद्ध – the synchronized five horses ( 5 senses of human )
उद्विगन बेला – the hour of prime excitement
परिभाषित – defined

Timeless Wait

He used to be happy,
He used to be excited,
For last years too ,
Days seemed Months,
Hours seemed days,
Minutes seemed hours.

He shall leave soon,
He shall reach soon,
On his soil, the holy cow.
Under the mango grooves,
But he wants to just know,
How long is a ‘soon’?

If ‘soon’ is a long period,
Long enough those ages,
He wishes to return back,
‘Soon’ from the bosom.
From the timeless naps.
Wish – Time just stops there.

Their Fortune – Our Fortune

If, I am lucky, in the sort span of time,
Will Castle, be there, fresh sand and lime.

Flower

I am learning to run before the walk,
There to draw sketches with red chalk.

Yes, they love the creepers, the crowd,
Should I feel little shame or proud!

Great the meanings of bread and butter,
Lucky fellows, if roof becomes shelter.

My bare shoulders are hard as wood,
To carry the religion called brotherhood.

Here, I travel smooth, dawn to dusk.
To make, Our fortune out of the husk!

A White Dove

O Dove, I don’t have bed of roses.
Not the golden cage.

O Dove, I don’t have the sweet grams here.
Not the green peas.

O Dove, I don’t have the sweets songs,
We are tribal.

O Dove, setting you free, just free.
From bondage.

O Dove, keep flying across sky,
Across the boundaries.

O Dove, if you fall tired,
Thick grasses, I grow here.

कविता की अर्थी

नून-तेल के दायरे से
निकली जब जिन्दगी ।

माल असबाब भरे पड़े थे
भविष्य के गोदामों में ।

महफिल की वाह वाही से
थके थे कान वहाँ पर ।

टकटकी लगा अब भी
चाँद को देख रहा था ।

कल की दिनचर्या बुनकर
आखिर जुलाहा सो गया ।

मस्जिद में बस नमाज पड़ी थी
इधर सपने में वह चीख पड़ा ।

देखा था , कलमों के सेज
पर कविता की अर्थी थी ।

मुर्गी माँ

MS – Office XP में राष्ट्भाषा का उपयोग आनंददायक है।

मै पहली बार इसे उपयोग कर रहा हूँ।

मुर्गी माँ

छोटे छोटे नन्हें बच्चे,

कुछ झुठे, कुछ सच्चे,

ठुमक – ठुमककर चलते हैं,

बीच में इठलाती मुर्गी माँ ।

मिट्टी-बालु खोद-खोदकर,

दाना-कीङे ढूँढ-ढूँढकर,

सिखाती जाती चूजों को,

खुद कम खाती मुर्गी माँ ।

कुछ कमजोर छोटे चूजे,

फँस जाते झाङी के पीछे,

दौङकर खोज निकालती उनको,

फिर गिनती करती मुर्गी माँ ।

देखकर आते दूर कुत्ते को,

छिपाती कोने में बच्चे को,

जोर-जोर से चिल्लाकर तब,

सावघान करती मुर्गी माँ ।

जव कोई उसके चुजे पकङे,

या फिर पिजङे में ही जकङे,

पता नहीं कहाँ से आती ताकत,

तब मुर्गा बनती मुर्गी माँ ।