कविता और पुतुल

my kavitaक्यों जाग गई, आज मेरी कविता ?
कितनी अच्छी ही तो सोयी थी !
कहाँ जाएगी तू, अनजानी राहों में ?
तू छोटी, मेरी नन्हीं डर जाएगी ।

खो जाएगी, बस रह मेरे पास,
कौन समझेगा, कौन जानेगा,
तेरी नादानी, तेरी बचकानी !
तू बस मेरे कंधों पे सो जा ।

छोटी सी खिड़की जो मैनें खोली ।
देख आज मेरी छोटी सी बगिया,
जहाँ गुलाबी कलियाँ उदास खिली ,
पर मत जा अभी – उजाला होने दे ।

मेरी थाती, देख दूर सड़क पर,
ले आऊँगा फिर तेरी एक पुतुल ।
लाल परी सी, गुनगुनाती गुड़िया,
फिर खेलना तुम दोनों, मैं सोऊँगा ।

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