श्वेत-श्याम

जीवन केवल श्वेत-श्याम नहीं बंधु,
उस श्याम का रंगभरा उपवन है ।
आँखें खोलो – देखो बाँहें पसारे,
मन का आँगन एक चितवन है ।

बाहर निकल, जो हँसना चाहता,
मानो वही तेरा गुलाबी बचपन है ।
कहीं बारिश में चलना चाहता,
श्वेत-श्याम से परे, तेरा छुटपन है ।

श्वेत आशा और श्याम निराशा,
समर्पित जीवन की एक अभिलाषा ।
धान की सुनहरी बाली से पहले,
हरियाली – उसका क्षणिक जीवन है ।

श्वेत दिवस और श्याम रात्रि मध्य,
ढलती संध्या भी तो निराली है,
खेतों की मेड़ों पर से कभी देखो,
क्षितिज के माथे भी एक लाली है ।