एक आभास फिर..

सोचा था, अंतिम बार मिल लूँ,
सोचा था, बस, इस बार देख लूँ,
सोचा था, कुछ अनकही कह दूँ,
या एक बार होठों को चुम लूँ ।

फिर..

उनसे बस मिल आया कल मैं,
देखा बस उनको झरोखे से मैंनें,
कहा उनकी-सी पगली हवाओं को मैनें,
और होंठ गुलाबी बस ज्यों भींग गये ।

फिर..

लगा अंतिम मिलना , पहली बार सा,
देखा फिर उनको, एक नये साज में,
गुँथें होंठ सारी बातें कह न पायी,
होठों पर मेरी दर्द फिर रह सी गयी ।