दूरी

पिया, मजबुरी है, तेरे साथ आज न मैं आ पाती,
तुम बगिया की हवाओं में ही मेरा साथ समझना ।

पिया, सोती नहीं मैं रातों में और रो भी न पाती,
कहीं आज, अपने पलकों में मुझे 
तुम सुलाना ।

पिया, कोने में रखी वीणा तो मैं आज बजा न पाती,
जब याद आए,मेरी मन की तारों को मीत समझना ।

पिया, कासे कहूँ, मैं तो तुम्हारी तरह रुठ भी न पाती ,
पर वहाँ पगली के सिसकियों को तुम भुल न जाना ।

जब से दुर हो – मेरी बाहें यूँ अकेली आज रह न पाती,
मेरे पिया, उनकी बंधन के यादों में तुम प्रीत जगाना ।

पिया, पता नहीं क्यों, आज विरह गीत भी मैं न गा पाती,
अगर हो सके तो, आज मेरी मौन को ही गीत समझना ।