विनती

आज संध्या प्रदीप या विश्वास का दीपक ,
हथेलियों के आगोस, तुम मुझे सहेज लेना ।

सुबह की नारंगी किरणों से पहले तुम प्रिये,
आज अँधेरी रतिया बस मेरे साथ हो चलना ।

आज मेरी अनुभूति और प्रेरणा हो तुम गोरी,
उन अधलिखे पन्नों पर तुम सो मत जाना ।

प्रेम देना तो तुमसे सीखा है – उस दिन मैनें,
मेरे असीम प्रेमगीत, तुम आँचल में भर लेना ।

जब मैं चुप हो जाऊँ गोरी, किसी एक संध्या,
चुपके से आकर, शाश्वत मेरी गीत बन जाना ।

1 thought on “विनती”

Leave a comment