मेरी माँ आयेगी

जब पुछा मैनें उनसे –
माँ तुम कब आओगी ।

कहती फिर मेरी माँ,
प्यार से डाँटकर –
“बिलकुल न जाऊँगी,
चुल्हे-चौके फिर क्यों,
अब भी मैं ही करूँगी ।”

नहीं मानती मेरी माँ ।
बड़ी मिन्नत की है मैनें,
झुठे – सच्चे वादे किये फिर ।
कहा – एक बार तो आजा ना,
फिर तेरी जैसी मर्जी, वैसा करना ।

खरीद रखे हैं मैनें,
उनकी साड़ी के स्टैंड,
उन पर कुछ धुले नये साड़ी,
रसोई में कुछ और बरतन,
कुछ नये पुजा की थाली,
कोने में कुछ फुलदान ।
आने वाली है शुभ एक घड़ी,
द्वारे पर लगाई, मैनें फुलों की लड़ी ।

खरीद रहा हूँ –
उनके लिए एक पलंग,
जमीन पर न सुलाऊँ उनको ।
और फिर खरीदे हैं ,
एक टीवी और कुछ सी डी ।
कुछ बहाने भी तो नहीं बनते,
पता है ये बातें न कर पायेगी ।
और यूँ ही कुछ दिन बीत जायेगी ,
फिर कल जब मेरी माँ आयेगी ।

गमलों में मैं पानी देता,
देखता नये कोपलों को,
आशाओं सी पलती बढ़ती ।
लगता है –
खिलेगी सारे गुलाबों की कली,
जब कल आएगी माँ मेरे गली ।

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