मीनू

दीपा की शादी में मुहल्ले के सारे लोग जमा थे उस दिन सब खुशियाँ मना रहे थे । जैसा मामाजी ने बता रखा था – सोना उस रात बारातियों के लिए सारी व्यवस्था कर रहा था ।

सोना ने उस रात खाना भी नहीं खाया, उसकी प्यारी ममेरी बहन की शादी में उसे भुख भी नहीं लग रही थी । वैसे भी उसके यहाँ बहनों की शादी के दिन भाईयों को खाना नसीब नहीं होता है – जब तक सही सलामत विदाई न हो जाए ।

रात के ग्यारह बज चुके थे । पर जेनरेटरों की आवाज और दौड़ते – भागते और ठंड में भी आईसक्रीम माँगते बच्चे, और शहनाई की धुन में लगता था अभी भी शाम ही है । बंगाली बाराती के लड़के- लड़कियाँ और सजेधजे घरवाले । एक रात का नाच – गाना और झुठे – सच्चे वादे, छोटे मोटे तानाकशी और प्यार भरी शरारतें ।

शादी शुरू हो चुकी थी । पंडितजी नव-दंपती को अपनी नहीं समझ में आनेवाली मंत्र सुना रहे थे । सोना की माँ, मीनू सबके साथ मंडप के पास कुर्सी पर बैठी हूई थी । वैसे बेटियों की पसंद की हूई, क्रीम सिल्क की हल्की जड़ीदार साड़ी में आज वह खिल रही थी पर अब उसके चेहरे पर झुर्रियाँ साफ दिखती थी ।

अभी सोना बारातियों को जनवासा में रखकर मंडप के पास पहूँचा ही था कि मीनू उसे बुलाकर कह दी – अगर समय मिले तो हम सबके लिए काफी बनाकर ले आओ । पता चला कि भाड़े का काफी वाला जा चुका था और सभी को काफी पीने का मन हो रहा था ।

वैसे माँ की बात काटना उसके बस की बात नहीं । पर बगल में बैठी हूई थी सोना की मौसेरी और उसकी अपनी बहन भी – जो यह सोचकर मुस्कुरा रही थी – कि चलो सोना भैया हैं – अब काफी मिलेगा । कम से कम पचीस कप काफी बनाने में सहायता के लिए फैशन स्टुडियो की कोई मा़डल बहन आगे नहीं आयी – अगर साथ आयी तो फिर वही – छुटकी साँवली पियाली – सीधी साधी ।

मीनू अब भी देख रही थी – शादी की रस्में । बीच-बीच में कुछ मजाक भी कर लेती थी आस-पास की मेहमानों से । अचानक पीछे से आ खड़ी हूई – मधुजा की माँ – विद्या । और पता नहीं क्या सोचकर रख डाली अपने दोनों हाथ मीनू के कंधे पर । विद्या और मीनू में गहरी जानपहचान थी । वैसे विद्या थोड़ी अभिमानी भी थी – उसका एक कारण यह भी था – गोरी तीखे नयन नख्शों वाली उसकी बेटी मधुजा । मधुजा दीपा की सहेली भी थी पर उन दिनों एम एस सी की परीक्षा के कारण शादी में नहीं आ सकी ।

मीनू को विद्या को वैसा करना थोड़ा अजीब सा लगा ।

“क्या हो रहा है ।” – मुस्कुरा कर मीनू सिर उठाकर देखने लगी ।

विद्या ने फिर हँसकर थोड़ा वजन और बढ़ा दिया ।

“अब इस उम्र में इतना वजन कहाँ सह पाती हूँ ।” – मीनू दोनों हाथों को उलटकर उसके हाथों को प्यार से पकड़कर कहने लगी ।

अब थोड़ा बजन और बढाते हूए सिर झुकाकर धीरे से कहने लगी – ” मैं तो आपका वजन हल्का कर दूँगी – आप भी, अगर हो सके, तो मेरा वजन हल्का कर दो ना ! “

विद्या अब हँसकर भार हल्का कर दी । मीनू को सारी बातें समझते देर न लगी । बाकी कोई न समझ पाया कि क्या हो रहा है ।

मीनू के सपने वह खुद ही जानती थी । चाहती तो वह भी की सोना की जल्दी अंगुठी बन जाए । पर वही जानती थी कि सोना के लिए उसे क्या चाहिए – बस एक बिलकुल साधारण पत्थर खोजती थी – बाकी पारस पत्थर की कला उसे जो आती थी ।

मीनू कभी मधुजा की धुँधली छवि याद करती, तो कभी बारातियों और मेहमानों पर आँखें दौड़ाती पर उसका सिर अभी भी भारी सा लग रहा था ।

वह इंतजार कर ही रही थी – कि ट्रे में कप सजाए “साईड प्लीज – गरम काफी” ट्रेन भेंडर वाली स्टाईल में बोलता हूआ सोना आ गया था । मीनू कप उठाकर कहने लगी – “सोना, पहले आँटी लोगों को दो ।”

पियाली दुसरी छोटी ट्रे लेकर लड़कियों की तरफ चली गयी ।

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