नन्हीं – नन्हीं भावनाएँ,
सच कहूँ – मेरी कविता सी ,
मेरे सामने के रास्ते में,
निकल पड़ती है, यूँ ही ।
बिना जाने वो नन्हीं,
निकल पड़ती है,
उस धुप में खेलती,
फिर गिर पड़ती है ।
देख गिरी मेरी नन्हीं,
समझाता हूँ – न जाना ।
खुब रोकर सो पड़ती है,
मेरे कंधो पर बेचारी ।
कितनी ही बार न ,
उससे गलती होती ,
फिर भी सीधी सी,
बस यूँ ही निकल जाती ।
अब भार सी हो गयी,
मेरे इन कंधों पर,
ये नन्हीं, मेरी छोटी सी।
परन्तु किसे दे दूँ ?
शायद यही मेरी नियती है,
यह नन्हीं मेरी प्यारी सी।
बिछुड़ना नहीं चाहती,
कहती है – यहीं रहूँगी ।
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