कितना प्यारा है यह रिश्ता,
जहाँ बस प्यार ही बसता,
कभी हँसता फिर कभी रोता,
सबकी अँगुली थामे चलता ।
कोई कुछ नहीं यहाँ माँगता,
दुसरों की जरुरत समझता,
किसी के माँगने से पहले देता,
नहीं रहने पर, बस ना कहता ।
जहाँ आशाएँ कोई नहीं करता,
निराशा से भी भला क्यों डरता,
डोर अनायास सा बुनता जाता,
प्रेम के गीत जब मन है गाता ।
जैसे दिन और सूरज का रिश्ता ।
जैसे चाँद और रात का रिश्ता ।
फिर उनमें सुबह-शाम का रिश्ता ।
फिर उनमें क्षितिज का रिश्ता ।
क्या मानव का भी हो सकता,
इनकी तरह का एक रिश्ता ।
जीवन गति का सतत् रिश्ता ।
मानव मुल्यों का एक रिश्ता ।
तन्हा दिल को है आज पता,
नातों से परे है एक रिश्ता,
पर क्यों मन यहाँ भरमाता,
समय के साथ सदा जो बहता ।
बस गीतों में ही मैं कहता ।
हाथ उठा, रब से माँगता,
दे सबको, फिर ऐसा ही रिश्ता ।
अगर नातों से परे है – एक रिश्ता !