वह शुक्रवार का दिन, और कंपनी की टीम लंच-पार्टी । क्या पियेंगे आप- मिनरल वाटर, सोडा वाटर या और कोई कोल्ड ड्रिंक , मीनू देखिये और बस आर्डर किजिए जनाब , चाहे तो फलेवर वाली लस्सी और बटर-मिल्क भी है ।
उस दिन दोपहर का खाना था इसलिए ‘लाल-शरबत’ का आयोजन नहीं था । वैसे मैं पीता नहीं हूँ पर मैनें देखा है यहाँ पर, सोमरस बिना पार्टी नहीं होती है यहाँ । फिर भी मस्त पार्टी हूई थी । चुँकि अबकी बार हमारे नियमित रेस्तराँ से ये अलग यह एक नया रेस्तराँ था, इसलिए स्वाद जीभ पर चिपक कर रह गया । करीब 35 जनों की हमारी टीम में हमलोग गये थे मस्त से रेस्तरां में । हँसी-मजाक और टेबल पर पिघल रहे थे आईसक्रीम पर लाल-लाल चेरी। उस दिन भी सभी ने जम-कर खाया-पीया ।
और पार्टी के बाद हमलोग वापस हो रहे थे । लौटते समय भी अपने कैब में मैं आने के समय के तरह ही नहीं बैठा था । ऐसे समय में मस्ती मुझे भाती है । कैब का JBL सराउंड साउंड सिस्टम इतना मस्त था कि चलती कैब में भी मैनें नाचने की कोई कसर न छोड़ी थी । आते समय खुब नाचा था – अपने दोस्तों के साथ । अबकी बार लौटती बार में भी पेट भरा होने पर भी थोड़ा थिरक तो जरुर सकता था ।
अभी थिड़कना मैनें शुरू ही किया था कि, ट्रैफिक पर कैब रुक गयी ।
खैर मेरा मन हूआ कि थोड़ा बाहर देखुँ । थोड़ा झुककर बाहर झाँककर देखा तो एक पानी का टैंकर का पीछे वाला हिस्सा दिखा । उसके पास घुम रही थी एक किशोरी लड़की – पगली सी। उमर होगी कोई 18-19 साल या और कम पता नहीं लगा मुझे। उसकी पतली सी काली सी देह पर, गंदे से सलवार-कमीज । पतली रस्सी सी मटमैली पीली चुनर कमर पर बँधी हूई ।
अब मेरे डांस वाले थिड़कते पैर – पता नहीं क्यों जम से गये । मैं देख रहा था, उस पगली की आँखों को । मुझे लगा वह कुछ खोज रही थी। शायद ढुँढ रही थी रास्ता या और कुछ । वह टैंकर के पीछे गयी । जहाँ टैंकर के पीछे से पानी नल से टपक रहा था, वहाँ वह खड़ी हो गयी । और जल्दी ही मेरी शंका दुर हो गयी । पता चला वह पगली नहीं थी – वह कान साफ करने के बड्स बेचने वाली थी । उसके हाथ में कुछ पैकट थे – कान साफ करने वाले सस्ते रंगीन बड्स के । जिसे शायद ट्रैफिक जाम में रुके कार के अधखुले खिड़कियों और हेलमेट से मुखड़े लगाये सभ्य लोगों को बेचती थी ।
पर उसके आँखों से साफ था कि वह अभी वह बड्स खरीदने वाले ग्राहक नहीं ढुँढ रही थी । उसने अपने बड्स के पैकेट को झोले में जल्दी से डाल दी । टैंकर से पीछे वाले जिस नल से पानी की बुँदे टपक रहा था , वहाँ पर पानी निकलने वाले हैंडल को उसने थोड़ा घुमाया, और वहाँ से पानी की पतली सी धारा बहने लगी सड़क पर । वह अपने हाथों से चुल्लु बनाकर पानी की धारा गटक रही थी । लग रहा था, महीनों से प्यासी है वह । बता दूँ कि पानी मुफ्त में नहीं मिलता है यहाँ बंगलौर में – और वह टैंकर भी कहीं किसी के घर में पानी बेचने जा रहा होगा । पर उस दिन खुले सड़क पर, वह पी रही थी बेचे जाने वाली पानी – मुफ्त मे । पर वह पी रही थी चोरी-चोरी – सबके सामने । कहीं टैंकर का ड्राईवर या खलासी देख न ले – वह गटक रही थी पानी उस तपती दुपहरिया में । उसके सलवार पर पानी के छींटे गिर रहे थे । पानी पीकर उसने उस बहती धारा में अपनी बाहों को आधा धो लिया । उसकी कमीज का निचला किनारा भींज चुका था ।
हमारी कैब की खिड़की से सब लोग अब यह सब देख रहे थे । टैंकर के पीछे खड़ी थी – होंडा सीटी कार । उसकी काँच के पीछे से भी चार आँखें उसे देख रही थी । उसने अब उस पानी से जल्दी-जल्दी अपना चेहरा धो लिया – थोड़ी साफ सी हो गयी थी अब वो । सारा कुछ हो गया करीब 1-2 मिनट में । अब शायद उसका समय हो गया था । ट्रैफिक का जाम भी अब साफ हो सकता था। अब वह टैंकर का हैंडिल बंद करते-करते अपने पैर भी धो डाली । नल बंद होते ही पानी की धार रुक गयी । उसका काम हो गया था ।
इतनी सफाई से टैंकर का नल खोलना और बंद करने से साफ हो गया कि हमारी पगली ऐसे कामों की अभ्यस्त थी । अब धोये हूए भींगें सामने के बाल, भींगें सलवार-कमीज के छोर । प्यासी की तृष्णा बुझ चुकी थी । उसकी चेहरे पर एक तृपती सी आ गयी । अब जल्दी से दो बड्स के पैकेट निकाल कर सड़क के उस पार चली गयी । मुड़कर भी नहीं देखा टेंकर की ओर या मुझ लेखक को ।
वह मेरी आँखों के सामने से ओझल हो गयी थी पर – भींग गयी थी बहुत सी चीजें – भींग गयी थी काली तपती सड़क, दो चार बुँदों से भींग गयी होगी – हमारी लंच-पार्टी की कैब की पहिए । भींग गयी होगी – एकाध पानी की छींटों से कार की बम्पर ।
ट्रैफिक सिग्नल की बत्ती हरी हो गयी । चल पड़ी हमारी कैब । चल पड़ी टैंकर । चल पड़ी कार । और टैंकर के पीछे नल से पहले की तरह से टपक रहा था बुँद-बुँद पानी ।
bhut hi sunder chitran kiya hai PYAS PANI OR GARIBI SE BADE BACHAPAN ka…..
bhtu hi acha vayang bhi hai ye Un amiron per jo Paison se beer pepsi coca cola or lassi me udaate hai…….
is maansun mein pani ka ye nayaa rang behad man ko chusaa gayaaaaa
behtreen..
wahan hi nahin yahan bhee bheeng gaya….. Bheeng gaya mann
Beautifully presented. Keep writing
hmmm somras peene walon se puchhiye ki isme koun se fruits use kiye jate hein…fir aap bhi somras ka aanad……..kuchh nahi 😉
Very beautiful observation.
And very touching.
Dada, probably i read this after long time after its creation. Apart from your expertise in literacy, it shows the great human being that u are. Probably, a poor girl in search of water does not have anymore importance than a stone or dustbin kept in the roadside. But you have made it centralpoint of your story, that is the beauty of writing. This one story have reminded me a scene, which i cant forget ever. The matter is as under- It was probably June or july month. time- the sun was going to take rest for that day, and it could be seen as red star. place- the footpath of the busy road of Bersarai a small area of Delhi, situated near JNU. An old person from Rajasthan- that typical Rajasthani Rural old person- who has weared turban, dhoti and kurta was somking a beedi and had his eyes on sky. probably watching the sun, beleiving that it was going to take rest for that day. He must had been 80-90 years old. Long body and shrinked but still good looking face. Seeing him anyone can say that he must have been a handsome person in his youth. But now deprieved of wordly desire, had no more hope in his life. Actully his small but skyaimed eye was narrating all this.
There was nothing wrong in this until I shaw a girl crossing by his side. Beautiful is a small word to describe her. Must be around 22-24. She was wearing short-shirt, folded jeans and the google. Although there was no interaction between the two. To see both at a single place was not less than eighth wonder for me. That day I had seen the contrast… the ultimate contrast….
Nice posting.