जिन्दगी थी, मस्ती भी थी,
दौलत थी, इक गश्ती भी थी ।
इक जवानी थी, रुबाब भी था,
दिवानी थी, इक ख्वाब भी था ।
हँसती गलियों में नकाब भी था,
रंगीनियों का एक शबाब भी था ।
जुमेरात शायद वह आबाद भी था,
जुम्मे के रोज़ वह बरबाद भी था ।
उस शाम साक़ी भी साथ न था ,
दो नज्म़ ग़ज़लों का बस याद था ।
Beautiful Gazal :).
Here again typos in second last and last para.
Rhicha
Lovely Gazal Prem. Now I can read all 🙂
Rhicha ji,
Hope its correct now. Actually I am writing in Hindi after many years.
If any more correction required ?
Thanks again.
मनीष जी,
धन्यवाद श्री मान् ।
बधाई हो , जरा बताऐंगे कि यह कैसे संभव हुआ