सुबह की शीतल किरण नहाकर,
आज नये एक गुलाबी चुनर में,
मंदिर जाती प्रिय सखियों संग,
देने उन चरणों में फिर अंजली ।
गेंदा गुलाब और चंपा – चमेली
रजनीगंधा की माला लेकर,
मन में वंदना के गीत गाकर,
बृजबाला ले चली कमल कली ।
रोली – चंदन फुल – दुब की,
हाथों में आज थाली सजाए,
मंदिर के घंटी में विभोर होती,
श्याम की अपनी एक मनचली ।
कहीं मंदिर के मृदंग थाप पर,
थिरकते कदमों के पदचाप पर,
मनमत्त होकर गाना चाहती,
मीरा की हृदय एक दोहावली ।
मंदिर के बंदनवार मे सजी,
सैकड़ो जलते दीपक के बीच
मेंहदी हाथों से दीए जलाकर,
ज्यों मना रही हो दीपावली ।
कहीं किसी मन के मंदिर,
भावों के पुष्प हाथों लेकर,
चुप बैठी आज मनन करती,
गोरी का मन एक गीतांजली ।
(P.S. : Thanks to Goggle image search for the picture. Credit being acknowledged to the respective owner of the same.)
Mandir and Bala
The poem is nice but title is not nice. It’s not that effective. I meant not as strong as the poem. Change the title.
Might you can put something like Pujan or Shradhanjali or Pushpanjali etc. or you might find other better title. These are simply my friendly suggestions.
@Juneli,
I too was searching for a better title, but I could not find one that time. I even thought to make it a title less poem !
But now ‘Pushpanjali’ title – I liked , as it picks the last para and overall essence well.
Thanks a lot for the suggestion and finding the poem nice !