राह चलते कोई मिलता,
वो बैचेनी अपनी जताता,
आखिर वो भी पुछ लेता-
बताओ कोई, नई खबर ।
किसी तरह उनको बहलाता,
फिर झुठे-सच्चे बातें बताता ।
बेचारा वह समझ सब जाता
कहाँ से देता, नई खबर ।
एक का पीछा जब छुटता,
दूसरा वहीं पर रुक जाता,
तीसरा फिर दौड़ा आता,
सुनने के लिए, नई खबर ।
कैसे लोगों को मैं समझाता,
समय अपनी गति है चलता ।
परिणाम पहले अगर जान पाता,
तो बन जाती, एक नई खबर ।
आज मेरा मित्र तू जो होता,
मौन मेरा तू फिर समझता ।
बातों में मुझे फिर बहला देता,
जब तक न बनती, नई खबर ।
फिर उनके घर जाकर कहता,
ढ़ेर सारी मिठाई बँटवाता ।
और गले लगकर उनका मै,
फिर जरूर बताता, नई खबर ।