काश मैं समझ पाता,
गुलमोहर पर बैठे,
पंछियों की आवाज,
उनके गीत, उनकी वाणी ।
उनके ही तरह मस्त,
काश वैसे ही दौड़ पाता,
पतली सी टहनियों पर
गिलहरियों के साथ ।
काश मैं समझ पाता,
तितलियों की टोली को,
खिले फुलों से उनकी बातें ,
फिर चुपके से रंग चुराना ।
काश मैं समझ पाता,
वे सब अनजानी बातें,
तैर रही थी पुरवैया में,
बस छु कर निकल गयी ।
Simple Short an Sweet…Good Work… Keep it up….