I wrote this poem last year , just imagining my completely unknown beloved who must be studying or doing a job at some place at that moment. Ma got sentimental after reading it, looking into my aankhein. This was also published in Hindi blogger’s web magazine http://nirantar.org .
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कैसी हैं अँखियाँ रे तेरी,
काली, नीली या भूरी रे ।
पहाङी, देशी या हिरणी सी,
स्नेह लबालब वे अँखियाँ रे ।
सीपियों बीच मोतियाँ जैसे,
इठलाती हुई पुतलियाँ रे ।
सुख के सपने बसाये हूए,
आसुँ न कोई उनमें भरना रे ।
विपदा अगर कोई आन पङे तो,
तुम ह्रदय की आँखें खोलना रे ।
बचाने के लिए बुरीं नजरें फिर,
नजरों में काजल तुम लगाना रे ।
हँसती अँखियाँ तुम खुब सबेरे,
प्यार की किरण छितराना रे ।
दीवारों की भी अँखियाँ होती,
तुम सोच-समझकर चलना रे ।
मुझसे अगर कोई भुल हो जाए,
आँखों की ही भाषा कहना रे ।
आँखे अगर थकीं होतीं हो तेरी,
वो फिर मुझको दे जाना रे ।
निंदियाँ रानी की प्यारी आँखे,
बंद करके तुम फिर सो जाना रे ।
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Such a lovely poem. Loved each word.
And you really have great Ma.