कितने ही कविता – कहानी मैं लिखुँ,
सीख न पाया मैं फिर बातें करना ।
कितने ही नाटक किये हैं मैनें,
पर सीख न पाया मुखड़ा लगाना ।
सबकी सुलझी बातें सुनी है मैनें,
पर सीख न पाया मैं बहाने बनाना ।
कितने ही तिजोरी बनाये थे मैनें,
पर छिपा न सका मैं कोई खजाना ।
बड़ी जतन से रिश्ते बुने थे मैनें,
सीखा न कोई आज दोस्त बनाना ।
khelaadi bankar harne se toh anari hona behtar.
aap ki kavita bahut sundar hai. Dil ko choo gaii
This a bloody fuckin poem!!!!!!